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कविता : वर्षा रानी …

hamaradesh-hamaradard
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मैं उसे छोड़ कर परदेस क्या   गया वो तो

रूठ ही गयीउसके दर्शन   दुर्लभ हो गये मैं

उसके लिये बहुत तड़पा और तरसा परदेश

में पर उसकी शक्ल ही न दिखी .अब कल

जो लौट के घर आया हूँ .सारे गिले शिकवे

छोड़   वो मुझसे मिलने    अपने पूरे ताम

झाम के साथ लौट आई है… पढ़िए ताज़ा

तरीन कविता “वर्षा रानी “


कविता। :  वर्षा रानी

जो मुझसे        रूठ        गयी थी
मुझसे मिलना   छोड़       गयी थी
शक्ल दिखाना   छोड़       गयी थी
आज मेरे  वापस     घर    आने पर
वो पुरजोरि  से मुझसे      मिल रही
सारी   इच्छाएँ          पूरी  कर रही
छम छम     करके          बरस रही
घटाओं    में       उमड़ी  पड़   रही

मुझे   मिल    रही  वो   मेरी  प्यारी
तड़पा दिल जिसके  लिये वो न्यारी
वर्षा रानी         मुझे        भा  गयी
वो मेरे           अंतस पे     छा  गयी
बहुत     प्यार       उससे  करता  हूँ
उसके लिये       बहुत     तड़पा  हूँ

वो मेरी प्यारी      रानी      आ  गयी
मेरी      वर्षा       रानी     आ  गयी
उमड़   घुमड़    कर   बरस  रही वो
चमक चमक     कर   बरस रही वो
मेरे सूखे    जीवन में बहार आ गयी
वर्षा रानी          पुनः        आ गयी

तुझे छोड़   अब न कभी जाऊंगा मैं
तुझे नाराज  अब  न कर पाउँगा  मैं
कभी न छोड़   के  जाना वर्षा रानी
मुझसे     प्यार    निभाना  ओ रानी

(समाप्त)



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