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एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार भारत में बुजुर्गों
की उपस्थिति लगभग 30%से35% है और
इनमे से बहुत थोड़े ऐसे भाग्यशाली है जो
आर्थिक रूप से आश्रित नहीं हैं उनसे भी कम
वे हैं जिन्हें परिवार का पोषण और संरक्षण
प्राप्तहै यानि कि वे अपने बच्चो के संरक्षण में
हैं और उनमे भी वो जिन्हें प्यार सम्मान भी
उन्हें प्राप्त है नगण्य हैं हमें उनके लिये संतोष
है पर जिन्हें येसुख नहीं प्राप्त है वो अपमान
और नारकीय जीवन जी रहे है सरकारी
प्रयास यथा वृद्धावस्था पेंशन सभी को उपलब्ध
नहीं जो हैभी वोह इस महंगाई में ऊँट के मुँह में
जीरे के समान ही है हमारे यहाँ वृद्धाश्रम का
चलन भी नहीं है जहाँ विदेशों के समान लोग
अपनी इस अवस्था को थोडा आराम और सुख
से जी सकें यह समस्या विकट हो जाती हैं जहाँ
आज के नुक्लियर परिवार हैं पति पत्नी दोनों
काम पर जाते है बच्चो की पढाई होमवर्क आदि
तथा रोज के गृहस्थी के कामों के बाद उनके
पास भी कहाँ समय बचता है कि बुज़ुर्ग माँ बाप
को देख सकें ऐसे में अगर वो शारीरिक या
मानसिक तौर पर आश्रित हैं तो कोढ़ में खाज
के सामान दुखदाई हो जाता है अब करें तो क्या
करें न बच्चो को छोड़ सकते हैं न माँ बाप को ही
आज इस लेख का चिंतन यहाँ से प्रारंभ होता है
हमने देखा कि बहुत सारे वे भी जो बहुत ही
थोड़ी संख्या में है जिन्हें अपने बच्चो की
देखभाल प्राप्त है पूर्णतया संतुष्ट नहीं है और
अगर पति पत्नी में एक गुज़र जाये तो दूसरा
पूरी तरह उपेक्षित हो जाता है मैंने कई वैवाहिक
साइट्स पर देखा बड़ी संख्या में बुजुर्ग भीजीवन
साथी ढूंढ रहे हैं जो सर्वथा उचित भी है
आखिर उन्हें भी तो जीने के लिये साथी की
जरूरत है अभिनेता आमिर खान जीके एक शो
“सत्यमेव जयते ” में इस समस्या को बड़े
प्रभावशाली ढंग से उठाया गया था जब
संयुक्त परिवारों का चलन था बुज़ुर्ग और
ऐसे लोगजिनका जीवन साथी बिछड़ जाता था
जी लेते थे कही कही विधवा विधुर के परस्पर
विवाह करने का रिवाज था पर बहुत सीमित
मात्रा मेंअब वो सब उपलब्ध नहीं अतः हमें
आपको और पूरे समाज को इस विषय में
सोंचना होगा कि समाज का यह महत्वपूर्ण
हिस्सा जिसने हमारे आज के लिये अपना
कल दिया है और जिनके कारण और प्रयासों
से हम इस धरती पर हैं और सम्मान से जी
रहे है जिनका आज हमारा कल होगा और
जो वे आज भुगत रहे हैं हम कल भुगतेंगे
यदि हमने आज न सोंचा और कोई कारगर
उपाय नहीं किये आखिर हम अगली पीढ़ी
को क्या शिक्षा और सन्देश दे रहे कि बुज़ुर्ग
एक बोझ हैं और उन्हें उनके हाल पर मरने
के लिये छोड़ दो कम से कम आज तक तो
ऐसा नहीं था हमें बचपन से बुजुर्गों के पैर
छूने को कहा जाता था और माँ बाप के पैरो
के तले स्वर्ग है ऐसा सिखाया और बताया
जाता था अतः हमने तो अपने बुजुर्गों को
अपनी पीढ़ी तक सब दिया जिसके वे पात्र थे
पर अब यह भावना नदारत होती जा रही है
अब क्या किया जाय तो मेरी समझ में
बुजुर्गो के लिये विदेशों सरीखे सर्वसुविधा
युक्तओल्ड होम बड़े स्तर में खोलने ही
होंगे जो सरकारी गैर सरकारी या
व्यक्तिगत या संस्थागत तौर से काम
करे बुजुर्गो के लिये विशेस मैरिज ब्यूरो
जहाँ उन्हें साथी ढूँढने में सहायता मिले
अपनी उम्र के लोगों का साथ मिले और
बुढ़ापा थोडा आराम से कटे उधर उनके
बच्चों के परिवार भी इनसे निश्चिंत
होकर अपनी जिन्दगी चैन से जी
सकेंगे इन बुजुर्गों के लिये विशेष
चिकत्सा व्यवस्था करनी होगी जहाँ
इनको तुरंत इलाज मिल सके उनकी
देखभाल हो सके
क्या यह वर्तमान पीढ़ी का यह दायित्व
नहीं है कि वोह बुजुर्गों के हित में भी
सोंचे जो कल हमारा भविष्य है और
अगर हमने कुछ नहीं सोंचा या किया तो
आने वाले पीढ़ी को गलत सन्देश जायेंगे
और हम भी वोही सब भुगतेंगे
जो आज हमारे बुज़ुर्ग भुगत रहे है
अतः तुरंत और प्रभावी सोंच और कदम
आज की आवश्यकता है
(समाप्त)
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