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सोंच विचार : एक थका उदास बचपन …

hamaradesh-hamaradard
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कहतें     हैं   कि    बच्चे  हमारा   भविष्य  है

हमारा     आनेवाला  कल    हैं   हमारी   सारी
उम्मीदें     उन पर   टिकीं हैं      पर हम कैसा
बचपन    उन्हें   दे रहें    हैं ये   बोझिल बस्ते
खेल     कूद   के   प्राकृतिक   माहौल  से  दूर
टेंसन    में    जीते   ये      बच्चे असमय  ही
अपना      बचपन    खो  देते  हैं  वो   कब्बडी
गुल्ली   डंडा, लट्टू ,पतंग बाज़ी,      खो    खो
जैसे    खेल   जानते  ही   नहीं   जो   शरीर के
और      मस्तिष्क    के   प्राक्रतिक   विकास
के     लिए आवश्यक     होते है क्रिकेट, हाकी
फुटबॉल,     वोल्ली वाल    जैसे  खेल मजबूत
शरीर    और    तेज   मस्तिष्क     देते       हैं

ये      बच्चे     होमवर्क, ट्यूशन     स्कूल   के
मकडजाल      में   ऐसा     उलझते हैं       कि
बचपन    के    सारे    मज़े   खो     देते हैं और
एक     थका    उदास   बचपन   जीवन   जीने
को    मजबूर    हो जाते हैं   उस पर सभी   की
बहुत    अपेक्षाएं    भी   होती  हैं ऊँचे प्रतिशत
लाने    का   टेंशन    जो  आगे  की कक्षाओं में
जाने    के लिए    आवश्यक  बन  गया है फिर
अलग    से    बहुत सारे   क्लासेज   जैसे डांस
,तैराकी   ,जुडो   कराटे ,ड्राइंग   पेंटिंग ,  स्कूल
के    प्रोजेक्ट्   पॉवर पॉइंट्स   ड्रामा   कविता
पाठ    आदि  आदि   बच्चा   क्या   क्या  करे
खाने    और  सोने   के     लिए   ही    समय
नहीं    वोह   खेले कब

मुझे आज     कल    के   बचपन   पर जितना
तरस  आता    है और    उतना ही गुस्सा आज
कल के   शिक्षा विदों कोर्स बनाने वालों पर  भी
आप  बच्चों    का आकार    देखो   और बसते
का     वजन   मुझे   इसमें  बड़ी साजिश और
भ्रष्टाचार   की बू    आती  है   किताब   छापने
वाले और   स्कूल    का प्रबंधन हर साल नयी
किताब  का       खरीदना    जरूरी कर देते  है
सबका   पैसा बनता है   बच्चा और    बचपन
जाये भाड़ में

अब मैं    अपना  बचपन याद  करता हूँ पिता
जी   नहीं  गए     थे    मेरा एडमिशन  कराने
घर   का   नौकर   मुझे    मोहल्ले की बेसिक
प्राइमरी    पाठशाला में   लेकर गया और वहां
के गुरूजी को बोला कि     फलां लाला का बेटा
है इस का    एडमिशन कर  लीजिये गुरूजी ने
मुझे पास   बुलाया    सिर   पर हाथ फेर मेरा
नाम पूंछा  फिर      पिता जी का  नाम   पूंछा
और रजिस्टर पर लिखकर     बोले  अब  कल
से स्कूल आना  नौकर   ने       ही  बाजार  ले
जाकर एक लकड़ीकी  तख्ती     खड़िया कलम
बनाने के  लिए सेठा     और किताब  खरीद दी
जिसमे आधे भाग  में हिंदी अक्षर    और बाकी
आधे  में गिनती थीं कक्षा   ६ से अंग्रेजी सीखी
कक्षा ८ से इतिहास   भूगोल    और नागरिक
शाश्त्र विदा हो गए कक्षा  १०   पास   करते  ही
चॉइस मिली मैथ्स पढो या   बायोलॉजी उसके
आगे का  रास्ता भी सुगम सरल  रहा   हमने
अपना बचपनभरपूर जिया कभी   दिमाग पर
ज्यादा टेंशन नहीं था प्राइवेटट्यूशनका  रिवाज
नहीं था शिक्षा का इतना  व्यवसायीकरण नहीं
हुआ था हमारी पढाई   सॉलिड थी    और हम
किसी से पीछे नहीं रहे न डांस सीखा  न ड्राइंग
न जूडो कराटे पर हाय रे जमाना  ये तो बच्चों
का बचपन ही खा गया

अतः    बहुत    ही    गंभीरता से   विचार की
आवश्यकता   है कि  क्या   हम  अपने बच्चों
को  उनका खोया बचपन  और आनंद    लौटा
सकते हैं  अभी   कुछ दिन पहिले  पूरे देश  के
बच्चों  से   टीवी    कॉन्फ़्रेंसिंग   में बात करते
हुए हमारे  प्रधान मंत्री  श्री  नरेन्द्र मोदी जी ने
बच्चों को खेलने पसीना बहाने   और    मस्ती
करने को कहा था  और मुझे ऐसा लगता है की
ऐसा ही कुछ देश के भविष्य इन नौनिहालों  के
लिए  किया जाना चाहिये  याद  रखिये    अभी
नहीं तो कभी नहीं

(समाप्त)

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