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कविता : मिलना साँप की केचुल का ..

hamaradesh-hamaradard
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आज सुबह…….

टहलते   टहलते …

अपने घर के गार्डन में …

अचानक दिखी …….

एक केंचुल साँप की …

जी   धक्  से रह गया ….

एक ठण्डी  सी सिहरन …

उतर गयी रीढ़ के ऊपर से नीचे तक …

हाँथ  पाँव  ठन्डे …..

चीख निकल गयी ….

अरे बाप रे….

केंचुल है तो साँप भी होगा …

नज़र दौडाई नज़दीक …नज़दीक ..

दूर ………दूर ……

कहीं तो  कुछ भी तो नहीं ….

पड़ोसी इक्कठे हो गये ….

चीख सुन कर ….

इतना बड़ा साँप …बाप रे …

नहीं …नहीं छोटा ही होगा ….यह तो ….

केंचुल का एक टुकड़ा ही है ….

मैंने अपने मन  को धिक्कारा …

अरे …डरे भी किससे … तो केंचुल से …

साँप से डरे तो फिर भी  समझ में आता है ..

फिर साँप से भी क्यों डरें ..

वोह किसी का क्या बिगाड़ता है

बेचारा अपने रास्ते आता है

अपने रास्ते जाता है ..

किसी से कुछ नहीं कहता …

खतरा दिखा तो ही फुफकारता है …

नहीं माने तो ही काटता है…

उसे भी तो आखिर जीने का  हक है …

आत्मरक्षा का हक़ है …

अतः ना तो केचुल से डरना है …

और ना ही साँप से ….

और साँप बड़ा हों या छोटा ….

पतला हो या मोटा …

उसके विष से आदमी मरता है

(साँप के )साइज़ से नहीं ..

अतः यह बहस ही बेकार है

कि साँप बड़ा था या छोटा ..

पतला था या मोटा ..

उसे तंग न किया जाये ..

उसे  यदि ढँग से जीने दिया जाये ..

तो वोह किसी का कुछ  बिगाड़ता  नहीं है

किसी का कुछ लेता नहीं है

वोह तो है दोस्त मानव का ….

ख़त्म करता है चूहे और वे तमाम नस्लें …

जो आदमी की दुश्मन है

अतः आइए आज से हम ..

डरना छोड़ दें केचुल से

साँप से …

क्योकि साँप हमारा ..

.पारवारिक मित्र है ..

और मित्रता उसका

उत्तम चरित्र है

आप उसके रास्ते में मत आइये

वोह आपके रास्ते में नहीं आयेगा

आप को देख कर वोह स्वयं ही ..

भाग जायेगा …

(समाप्त )

वास्तव में साँप हमारा मित्र है और अकारण हमें हानि नहीं पहुंचाता

,सब साँप ज़हरीले भी नहीं होते ,अतः साँपों की रक्षा मानव जाति के

हित  में है

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