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यह मत पूँछो घर किसका जला
वोह हिन्दू का या मुसलमान का
वोह घर कोई भी क्योँ न हो पर
था तो वोह हिन्दुस्तान का
हर वार लग रहा छाती पर
हर गोली छलनी करती है सीना
हर आग का गोला करता है
इन्सान का मुश्किल अब जीना
जिस घर में आज मौत हुई
उसने अपना सब खोया है
है इन्सानियत की भी मौत हुई
ईमान बैठकर रोया है
बेईमान साज़िशें सियासत की
इन्सान का ख़ून बहाया है
फैला कर दहशत गुण्डागर्दी
लूट खसोट आगजनी बदअमनी
अपना धंदा चमकाया है
इस दंगे में हमने क्या खोया
और क्या हमने पाया है ?
हिसाब करोगे तो देखोगे
हमने कुछ भी पाया नहीं
केवल और केवल गँवाया है
सदियों में जो बन पाता है
वो सौहार्द हमने मुफ्त लुटाया है
(समाप्त)
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