Menu
blogid : 18820 postid : 973951

कविता :मेरा बाप …

hamaradesh-hamaradard
hamaradesh-hamaradard
  • 104 Posts
  • 64 Comments

मेरा   बाप ….मेरे अंदर   अभी जिंदा है …..

वोह   मुझे   बताता है …   .सिखाता है ….

क्या उचित है और क्या अनुचित ….?

वोह     मुझे     नियंत्रित   करता     है ……

मै उसके सिद्धांतों का पालन करता हूँ …..

उसके    आदर्शो    पर .   .चलता     हूँ

मेरे   बाप का दुश्मन    मेरा दुश्मन है …

और …उसका दोस्त ..      .मेरा दोस्त …

मैं बाप   के बनाये मकान में रहता हूँ ..

उसके    खेतों में …काम     कारता हूँ …

उसके   बताये देवताओं को पूजता हूँ

उसके   सिखाये   त्यौहार   मनाता हूँ

मेरे    बाप ने     मुझे बताया था …कि

” अपन  हिन्दू  हैं ……..”

यह     भी बताया     था    कि …कि ..

हिन्दू    क्या    होता है .       …उसे …

क्या    करना चाहिये …और क्या नहीं ..

उसने     बहुत    कुछ    सिखाया   था …

न       सीखने                             पर …

या   आज्ञा के    उन्लनघन करने पर ..

बेरहमी    से ..    मारा     भी        था ..

आज     मैं     भी  वही सब करता हूँ

अपनी      संतानों    के            साथ …

इसीलिये ..        .तो       कहता   हूँ ..

कि ..    मेरा    बाप     मेरे      अंदर ..

पूरी     तरह    से          जिन्दा    है …

वोह      मेरी    आँखों  से   देखता है …

मेरे     कानों        से         सुनता है …..

मेरे      दिमाग      से       सोंचता है

पर .     .फिर      भी       सब     पर

नियंत्रण          उसी          का     है ….

और      मैं     इस     नियंत्रण   को ………..

सहर्ष       स्वीकार भी      करता हूँ …..

मेरा        बाप          महान       था ….

तहे      दिल से मैं   यह मानता हूँ …

मैं उसके आदर्शो का …शिक्षाओं का ..

पालन              करता                 हूँ ..

और               अपनी   संतानों   को …

उचित . उनुचित का  भेद बताता हूँ …

उन्हें     बताता हूँ    क्या    करना है …

और                 क्या               नहीं ….

यह       बताना मेरा  कर्त्तव्य भी है ..

और .          ..हक़                    भी …..

क्योंकि   मैं भी  अपनी संतानों में ……

सदा ..    .सदा ..   .जिंदा      रहूँगा …

उन्हें              नियंत्रित      करूँगा …

उन्हें                             बताऊंगा .

उचित          उनुचित     का भेद …

उन्हें  अच्छा  इन्सान    बनाऊंगा …

उन्हें तमाम बुराइयों से बचाऊंगा …

तब         मेरी संताने   भी कहेंगी ….

हाँ              हमारा               बाप

हमारे       अंदर      ” अभी  तक”

जिंदा है.           …….जिंदा है ……

और    यह     सिलसिला चलेगा

क़यामत                           तक……

हाँ    हमारे पूर्वज  सच कहते थे …

आत्मा .कभी नहीं मरती केवल …..

चोले    बदल  लिया     करती है …

जैसे       हम    कपड़े बदलते हैं …

और    इसी प्रकार हमारे पूर्वज …..

ऋषि      मुनि ,महान आत्माएँ ..

राम .कृष्ण जीसिस .मोहम्मद ..

सभी    हम     सब में  जिंदा हैं …

और हमें    उपदेश देते रहतें हैं

बुराइयों    से ..मोड़ते    रहते हैं …

काश       ये      समझने    का

..दिलो                  दिमाग …

हमारे          पास       होता ….

काश            ऐसा      होता ……

काश      ऐसा             होता …

तो  इस          धरती     पर

निखालिस     स्वर्ग    होता

निखालिस     स्वर्ग   होता

(समाप्त)

विशेष नोट   : यह     कविता जीन्स सिधांत पर

व् उसके विश्वास      पर   आधारित   है जिसके

अनुसार तमाम गुण दोष  संतानों में    पीदियों

तक  चलती रहतें  है

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh