कमली का मन चाहता है कि
उसे कोई उसे प्यार करे ……
जब वोह देखती है सामने रहने वाले
नव विवाहित दम्पत्ति प्रभा और प्रकाश
आपस में प्यार करते हैं
कमली का मन चाहता है कि
उसे कोई उसे भी घुमाने ले जाये
जब वोह प्रभा और प्रकाश को
स्वछन्द बाँहों में बाहें थामे
पंछी जोड़े सा घूमते देखती है
कमली का मन चाहता है कि
कोई उसे भी अच्छी अच्छी चीजें
बड़े प्यार और मनुहार से गिफ्ट करे
कमली का मन चाहता है कि
वोह भी चाय का कप हाथ में पकड़
सुबह सुबह किसी को नींद से
प्यार से जगाये और वोह
उसे अपने आगोश में खींच कर
भींच ले और चुम्बनों की बौछार करे
और वोह भी अपने को ढीला छोड़
उससे लिपट जाये जैसे
प्रभा करती है प्रकाश के साथ
कमली बहुत सारे बच्चों की
माँ बनना चाहती है
उन्हें प्यार करना चाहती है
उनके संग खेलना चाहती है
पर उसके मज़दूर माँ बाप
पैसे की मज़बूरी से उसके हाथ
अब तक पीले नहीं कर पाये हैं
अब जब जवानी का लावण्य ढलने लगा है
उसका लाल चेहरा पीला पड़ने लगा है
शरीर के साथ मन भी मरने लगा है
उसे पड़ोस का पंचम
ललचाई आँखों से देखता है
उसे इशारे करता है और जब वोह
नहा के कपडे बदलती है वोह ऐसे
ऐसे ताकता है कि बस खा ही जायेगा
इसपर कमली यद्द्यपि गुस्सा दिखाती है
उसे पंचम का यूूँ ताकना कहीं
अंदर से भाता भी है और धीरे धीरे
उसे भी पंचम भाने लगा है
वोह भी उसके इशारों का जवाब
अब इशारों से देने लगी है
अब शरीर का साथ मन भी देता है
उसका मन करता है कि
पंचम सब कुछ वैसा ही करे
कमली का मन चाहता है कि
उसे कोई उसे प्यार करे ……
जब वोह देखती है सामने रहने वाले
नव विवाहित दम्पत्ति प्रभा और प्रकाश
आपस में प्यार करते हैं
कमली का मन चाहता है कि
उसे कोई उसे भी घुमाने ले जाये
जब वोह प्रभा और प्रकाश को
स्वछन्द बाँहों में बाहें थामे
पंछी जोड़े सा घूमते देखती है
कमली का मन चाहता है कि
कोई उसे भी अच्छी अच्छी चीजें
बड़े प्यार और मनुहार से गिफ्ट करे
कमली का मन चाहता है कि
वोह भी चाय का कप हाथ में पकड़
सुबह सुबह किसी को नींद से
प्यार से जगाये और वोह
उसे अपने आगोश में खींच कर
भींच ले और चुम्बनों की बौछार करे
और वोह भी अपने को ढीला छोड़
उससे लिपट जाये जैसे
प्रभा करती है प्रकाश के साथ
कमली बहुत सारे बच्चों की
माँ बनना चाहती है
उन्हें प्यार करना चाहती है
उनके संग खेलना चाहती है
पर उसके मज़दूर माँ बाप
पैसे की मज़बूरी से उसके हाथ
अब तक पीले नहीं कर पाये हैं
अब जब जवानी का लावण्य ढलने लगा है
उसका लाल चेहरा पीला पड़ने लगा है
शरीर के साथ मन भी मरने लगा है
उसे पड़ोस का पंचम
ललचाई आँखों से देखता है
उसे इशारे करता है और जब वोह
नहा के कपडे बदलती है वोह ऐसे
ऐसे ताकता है कि बस खा ही जायेगा
इसपर कमली यद्द्यपि गुस्सा दिखाती है
उसे पंचम का यूूँ ताकना कहीं
अंदर से भाता भी है और धीरे धीरे
उसे भी पंचम भाने लगा है
वोह भी उसके इशारों का जवाब
अब इशारों से देने लगी है
अब शरीर का साथ मन भी देता है
उसका मन करता है कि
पंचम सब कुछ वैसा ही करे
पर गरीब माँ बाप की इज़्ज़त
आडें आती है कमली वोह नहीं कर पाती
घर से नहीं भाग पाती
यद्द्यपि उसका मन चाहता है
बहुत चाहता है बड़ी शिद्दत से चाहता है
मन है कि बस चाहता है
मन है कि बस चाहता है
मन है कि बस चाहता है
(समाप्त)
अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव
विषेस नोट : प्रस्तुत कविता एक नव युवती
की मनःस्थिति प्रस्तुत करती है कि उसका
मन क्या चाहता है और क्या उसे रोकता है